साहब! मैं हिंदुस्तानी हूँ
मुझे हिंदुस्तान में डर नहीं लगता है
स्वतंत्र हूँ विचारोक्ति में
मानव मानव में फर्क नहीं लगता है
पर डरता हूँ उन गद्दारो से
जिन्हें सीरिया ,तुर्की में शान्ति नज़र आती है
कोई शायर,कोई अभिनेता,कोई उपराष्ट्रपति बना
जिन्हें सराहा ,उनकी सहिष्णुता जेहादी नज़र आती है
पाल घर के संतों पर मौन मुख क्षुद्र नर
गोहत्यारे समर्थक अवार्ड वापसी पर उतरते हैं
कश्मीरी पंडितों का दर्द जिन्हें दिखता नहीं
पर पत्थर बाजों के हक़ में वो लड़ते हैं
अब तो हम अपने ही घर मे बेघर से हुए जाते हैं
फिर भी मेरी जन्म भूमि जान से भी प्यारी है
हिंदुस्तान में ही जन्म मृत्यु चाह मेरी सर्वदा
अपनी ये सरजमीं सौ स्वर्ग से भी प्यारी है
प्रणाम।।जय हिंद जय भारत
धर्मेंद्र नाथ त्रिपाठी ”संतोष”