जिस मातृभूमि का अन्न खाया आमिर
वही देश उसका गैर हो गया
बहत्तर हूरों की चाह रखता है गद्दार
और घर में ही पहली बीबी से बैर हो गया
डर उस काफिर को लगता है वहाँ
जहाँ इंसानियत आज तक जिंदा है
पर तुर्की जैसे देश से है प्यार उसको
और बेहूदा हिंदुस्तान पर शर्मिंदा है
नमक हराम को दूसरे के मजहब में
ताक झांक की आदत है
और हलाला की उत्पत्ति को
अपने पर क्या कोई लानत है?
हम हिंदुस्तानी बड़े सभ्य ,सहनशील रहे
पर इस जाहिल पर क्या कोई आफत है ?
हम एक परिवार हैं ,लड़ेंगे ,भिड़ेंगे
पर प्यार भी जताएंगे
ऐसे गद्दार को जो ,हिन्द को बदनाम करे
ऐसे उन्मादी को सबक भी सिखाएंगे
अब तक तो हमने इसे दिल मे बसाया था
पर इस गद्दारको हम धूल भी चटाएंगे
प्रणाम।।जय हिंद।।वन्दे मातरम
धर्मेंद्र नाथ त्रिपाठी”संतोष”